कहानी हो गये सारे कहानी जो सुनाते थे
नही जागे वो यूँ सोए.के जो मुझको सुलाते थे
सुना है लोहे का जंगला लगाया है कमेटी ने
वही मंदिर जहाँ से हम कभी पैसे चुराते थे
बिना ईदी के कैसे पूरी होगी ईद.अब मेरी
मुझे ईदी की बदले में गले अब्बू लगाते थे
हमारे दिल में जो है और जितना है समझने को
मुहब्बत थी या चूड़ी थी जिसे हम आजमाते थे
ज़ुबा से नाक गर छूँ लूँ... लगेंगे pankh phir mujhko
मुझे बचपन में भाई सब बड़ा उल्लू बनाते थे
खफा हो आसमां हमसे बला से अपनी होता हो
वो कहती थी की लाओ चाँद हम भी तोड़ लाते थे
समझ इसको न घर चिड़िया मुझे है कैद से बढ़ कर
वोह ही घर मेरा था मेहमाँ जहाँ जाते थे आते थे
किसी का ज़िक्र आते ही हमारी आंख भर आना
तुम्हें भी याद है क्या फ़िक्र हम जिसको भुलाते थे
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