Thursday, September 8, 2011

ye jo berojgaari ke din hai


रतजगे साथी अश्क़ मोहसिन हैं
ये जो बेरोज़गारी के दिन हैं

दुश्मनी से निभा रहे है सब
वैसे यारों की यारी के दिन हैं

अपनी पे आई है मेरी किस्मत
हादसे मौजजों से मुमकिन हैं

जो छुड़ा लेंगे ज़िंदगी से मुझे 
हाथ ये मौत के नही ज़िन्न है

खुद खुशी करनी आ गयी अब तो
खुश बहुत हम भी अब तेरे बिन हैं

उम्र तो हो गयी मेरी आधी
फ़िक्र मेरी अभी भी कम-सिन हैं

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