रतजगे साथी अश्क़ मोहसिन हैं
ये जो बेरोज़गारी के दिन हैं
दुश्मनी से निभा रहे है सब
वैसे यारों की यारी के दिन हैं
अपनी पे आई है मेरी किस्मत
जो छुड़ा लेंगे ज़िंदगी से मुझे
हाथ ये मौत के नही ज़िन्न है
खुद खुशी करनी आ गयी अब तो
खुश बहुत हम भी अब तेरे बिन हैं
उम्र तो हो गयी मेरी आधी
फ़िक्र मेरी अभी भी कम-सिन हैं
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